बिछड़ते वक़्त उस ने कहा था सुनो तुम मुझे याद आओगी जब कभी साहिल समुंदर पर नंगे पाँव चलते हुए समुंदर की आग़ोश में डूबते सूरज के मंज़र का पीला-पन आँखों में उतरेगा तुम मुझे याद आओगी जब कभी बरसातों की अँधेरी रातों में दिल के किसी गोशे में इक हल्की सी आहट पा कर यादें गहरी नींद से जागेंगी तुम मुझे याद आओगी जब कभी ज़ीस्त के किसी मोड़ पर किसी ग़म-गुसार किसी जाँ-निसार से कुछ कहने सुनने का मन चाहेगा जब कभी दिल ये चाहेगा कि किसी हमदम किसी महबूब की चाहत में इस दुनिया को छोड़ दे तुम मुझे याद आओगी जब कभी सर्दियों की शामों में ये ख़्वाहिश दर-दिल पे दस्तक देगी कि साथ इक साथी हो जिस की बातों में जिस की साँसों में इक अनोखी गर्मी हो चाहतों की हिद्दत हो तुम मुझे याद आओगी इस से मैं उस से क्या कहती मा-सिवाए इस के कि तुम्हें याद आने के लिए किसी हवाले किसी मौसम किसी मंज़र की हाजत की किसी भी वास्ते की ज़रूरत नहीं दिल की धड़कन हर घड़ी हर पल साथ चलती है साथ रहती है और तुम मेरे दिल की धड़कन हो जो चाह कर भी रुक नहीं सकती मैं तुम को भूल नहीं सकती