मैं ख़लाओं में फिरा पाताल में भटका समुंदर छान मारे वुसअत-ए-सहरा को मुट्ठी में लपेटा चाँद सूरज खोंद डाले अपनी गर्दन पर लिया तारों का ख़ून वक़्त की लाखों तनाबें काट दीं आख़िरश थक-हार कर (जब तुम न मिल पाए तो) आ लेटा हूँ इस अंधी गुफा में तुम यहाँ दुबके हुए हो!