अब वो सफ़र में साथ ले जाने वाले बिसतर-बंद के काम आती है और कभी कभी बच्चे अपनी टूटी हुई बे-पहियों की गाड़ी से उसे बाँध देते हैं बहुत दिन पहले वो दो दिलों से बंधी थी जब च्यूंटियाँ दिखाती थीं उस पर अपनी बाज़ीगरी मुँह में ग़िज़ा दबाए इधर से उधर इठलाती हुई कभी कभी परिंदे अपनी अपनी उड़ानों से थक कर उस पर बैठ जाते थे जब ये भीगती थी बारिशों में सेंकती थी बहारों की धूप कभी कभी ये बन जाती थी रंग-बी-रंग के कपड़ों की अलगनी टूटी हुई रस्सी से जुड़े दिल अब कहाँ हैं?