उड़ान By Nazm << पहाड़ी की आख़िरी शाम हर साल इन सुब्हों >> मन का ये आँचल चाहता तो है खुले आसमान में उड़ना हौसला है दिशाएँ हैं और पँख भी हैं उड़ने के लिए मगर उसे उड़ने से इंकार है कि अब भी उस का कोई सिरा ज़मीन से जुड़ा है शायद Share on: