उदासियों की रुत भी क्या अजीब है कोई न मेरे पास है तुम तो मेरे पास हो मगर कहाँ हवा की ख़ुशबुओं में सब्ज़ रौशनी की धूल में दिल में बजती तालियों के पास उदासियों के ज़र्द बाल जल उठे थे उस घड़ी तुम्हारी सर्द याद के सफ़ेद फूल खिल उठे थे जिस घड़ी नज़र में इक सफ़ेद बर्फ़ गिर रही थी दूर तक सुर्ख़ बेलें खिल उठी थीं याद की छतों के पास उदासियों की रुत भी क्या अजीब है याद की छतों पे सुर्ख़ फूल हैं दूर दूर सब्ज़ रौशनी की धूल है और बर्फ़ गिर रही है ख़ामुशी के सर्द जंगलों के पास