एक अकहरा दूसरा दोहरा तीसरा है सो तिहरा है एक अकहरे पर पल पल को ध्यान का ख़ूनीं पहरा है दूसरे दोहरे के रस्ते में तीसरा खेल का मुहरा है तीसरा तिहरा जो है उस का सब से उजागर चेहरा है गोया अकहरा पहरा दोहरा मोहरा तिहरा चेहरा है एक अकहरा काग़ज़ दोहरा तिहरा हो कर नाव बनी नाव से पल भर बच्चे बहले खेल खेल में घाव बनी घाव बनी तो दिल में ध्यान ये आया कह दें आओ बनी बन बन कर जो खेल बिगड़ जाते हैं उन की बात नहीं कोई जनाज़ा भी ये नहीं है और कोई बारात नहीं ये इक ऐसा दिन है जिस के आगे पीछे रात नहीं तिहरे की हर तह में यूँ तो एक नया ही चेहरा है लेकिन हर एक चेहरा उस बिन खेले खेल का मोहरा है जिस का रंग अकहरा है आगे बात बढ़ाएँ कैसे बात बने तो बात बढ़े अब तक रंग अकहरा था गर कोई बढ़ा तो हाथ बढ़े होनी की तो रीत यही है छोटे दिन की रात बढ़े अब तो जो भी बढ़ना चाहे अपने साथ ही साथ बढ़े आगे पीछे दौड़ दौड़ कर इक आगे इक पीछे है पीछे वाला कैसे बढ़े जब आगे वाला भी दौड़े दोनों चोट बराबर की हैं ये दोनों से कौन कहे हार और जीत इसी में है अब कौन रुके और कौन बढ़े