इश्क़ का राग जो गाना हो मैं उर्दू बोलूँ किसी रूठे को मनाना हो मैं उर्दू बोलूँ बात नफ़रत की हो करनी तो ज़बानें कितनी जब मुझे प्यार जताना हो मैं उर्दू बोलूँ किसी मुरझाते हुए बाग़ में ग़ज़लें पढ़ कर जब मुझे फूल खिलाना हो मैं उर्दू बोलूँ इस की ख़ुश्बू से चला आएगा खिंच कर कोई जब उसे पास बुलाना हो मैं उर्दू बोलूँ बे-अदब बज़्म में शाइस्ता बयानी कर के शम्अ'-ए-तहज़ीब जलाना हो मैं उर्दू बोलूँ एक ख़ामोश सी महफ़िल में भी लफ़्ज़ों से 'सहाब' जब मुझे आग लगाना हो मैं उर्दू बोलूँ