दिल-ए-ख़वास है रूह-ए-अवाम है उर्दू ज़बाँ नहीं है मुकम्मल निज़ाम है उर्दू हर इक मक़ाम है दार-उल-ख़िलाफ़ा-ए-उर्दू और इस पे लुत्फ़ ये है बे-मक़ाम है उर्दू कमाल-ए-हुस्न-ओ-फ़साहत जमाल-ए-नुत्क़-ओ-बयाँ ये मुक़तदी हैं और इन की इमाम है उर्दू ग़ज़ल-सरा है ज़माना हयात नग़्मा-कुनाँ वज़ीफ़ा-ए-सहर-ओ-रोज़-ओ-शाम है उर्दू हमारे शम्स-ओ-क़मर इस से नूर पाते हैं सहर की जोत तजल्ली-ए-शाम है उर्दू 'नदीम' चाँद पे भी ख़ाक पड़ सकी है कभी सिपहर-ए-अस्र पे माह तमाम है उर्दू है तल्ख़-कामी-ए-दुश्मन में भी इसी का सुरूर कोई बताओ कि किस जा हराम है उर्दू