वो तो आबाद रखा हम ने जहान-ए-उर्दू वर्ना तुम कब का मिटा देते निशान-ए-उर्दू न सियाही का समुंदर न फ़लक सा काग़ज़ कैसे लिक्खे कोई तारीफ़-ए-ज़बान-ए-उर्दू हम पे तुम फ़ख़्र करो हिन्द के रहने वालो हम से क़ाएम है ज़माने में निशान-ए-उर्दू ये है तहज़ीब की देवी ये अदीबों की ज़बाँ बे-अदब कैसे भला जानेंगे शान-ए-उर्दू तल्ख़ बातों को भी नरमी से निभा लेती है कितनी मासूम तबीअत है ज़बान-ए-उर्दू मुश्क-ओ-अम्बर की महक आती है बाम-ओ-दर से ऐसे लफ़्ज़ों से मुज़य्यन है मकान-ए-उर्दू ऐसे उर्दू को रग-ए-जाँ में समो लो 'आमिर' ये ज़माना तुम्हें कहने लगे जान-ए-उर्दू