ख़ुदा उस क़ौम को इज़्ज़त नहीं देता ज़माने में जिसे क़ौमी बुज़ुर्गों का अदब करना नहीं आता यक़ीनन होती है मरने से बद-तर ज़िंदगी उस की जिसे मुल्क-ओ-वतन के वास्ते मरना नहीं आता बुतों का ख़ौफ़ रखता है उसे लर्ज़ा ब-तन हर-दम ख़ुदा के ख़ौफ़ से जिस शख़्स को डरना नहीं आता जवाँ मर्दों ही का है काम क़त्अ-ए-राह-ए-हुर्रियत कि इस मंज़िल में बुज़दिल को क़दम धरना नहीं आता मुक़द्दर में है उस के उम्र भर पामाल-ए-ग़म रहना जिसे पामाली-ए-मिल्लत का ग़म करना नहीं आता उसे ज़िंदा न समझो साँस है गो जिस के सीने में मगर आज़ादी-ए-मिल्लत का दम भरना नहीं आता ब-क़ौल-ए-हज़रत-ए-अकबर फ़ना में है बक़ा मुज़्मर उसे जीना नहीं आता जिसे मरना नहीं आता