ये आदाद की क़ौस कब सीधी होगी हमें क्या ख़बर बस ख़ुदा को ख़बर है नक़ाबों की क़ौसें थीं ज़िम्मे हमारे जो चेहरों पे सीधे किए हैं किवाड़ों की क़ौसें थीं ज़िम्मे हमारे जो खुलते नहीं हैं हमारी भँवों की कमानें दुआ में उठे हाथ सज्दों रुकूओं की क़ौसें अकड़ने लगी हैं बदन क़ौस थे जो बदलने लगे हैं दहन क़ौस होते नहीं हैं ख़ुदा तेरी क़ौस-ए-क़ुज़ह कब खुलेगी