है साल-ए-नौ की आमद हर शख़्स की ख़ुशी है क्या रंग लाएगा ये इस की नहीं ख़बर कुछ मैं जानता हूँ ज़ालिम तेरी ये दिल-लगी है दिल में नहीं किसी के जो मौत का ख़तर कुछ ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत आलम का लहज़ा लहज़ा में हाल क्या से क्या है मुफ़्लिस अभी था कोई मसनद-नशीं अभी है जीता कोई अभी था अब दफ़्न हो रहा है ज़ालिम कभी रिफ़ाक़त तू ने किसी की की है ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत कहना किसी घड़ी को अपना ग़लत सरासर आलम जिसे हैं कहते तग़ईर का है मस्कन तुझ को अगर मैं समझूँ ठहरा ग़लत सरासर ज़ालिम लगा हुआ है तुझ में बला का इंजन ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत थे ख़ार-ज़ार जिस जा है बुलबुलों का मस्कन अल्लाह किस ग़ज़ब के हर आन हैं ये फेरे थीं महफ़िलें जहाँ पर है बेकसों का मदफ़न ये हथकंडे हैं तेरे ये हथकंडे हैं तेरे ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत