अच्छी अम्माँ वक़्त की डिबिया जो खुल जाए कहीं और ये घंटे और मिनट सारे निकल कर भाग जाएँ तब मुझे मकतब न जाने पर बुरा कहना न तुम तब तो मकतब का न होगा वक़्त ही गोया कभी जिस क़दर घड़ियाँ हैं दुनिया भर में वो तो सब की सब देख लेना दस बजाना ही न जानेंगी कभी देखो अम्माँ अब जो सोने के लिए लेटूँ न मैं तुम न अब मुझ पर ख़फ़ा होना ख़ता मेरी नहीं कैसे सोऊँ मैं निशाँ तक भी न हो जब रात का मेरी अम्माँ अब तो रातें सारी ग़ाएब हो गईं अच्छी अम्माँ आज तो इक बात मेरी मान लो बस कहानी पर कहानी मुझ से तुम कहती रहो तुम कहोगी ये कहानी ख़त्म होती ही नहीं ख़त्म हो जाए कहानी रात जब आगे बढ़े देख लेना आज सोने को न होगी देर कुछ वक़्त की डिबिया के खुल जाने से रातें उड़ गईं