वस्ल By Nazm << हमल-सरा परिंदों भरा आसमान >> मैं ने तेरी याद का लम्हा बोया था ख़ून पिलाया था धरती को दर्द-ओ-ग़म की खाद भी डाली मेरे आँसू के सूरज ने हिज्र के पौदे को सींचा था और अब देखो हिज्र का पौदा पेड़ बना तो उस पर वस्ल के फूल और फल आए हैं Share on: