मुझे पानियों पे रक़म करो कि मिरी बिसात ग़ुबार है जो निशानियाँ हैं मिरी यहाँ उन्हें बहर-ए-गर्द में ज़म करो मिरे आँसुओं मिरे क़हक़हों को ख़याल-ओ-ख़्वाब का नाम दो मिरी क़ुर्बतों के घने शजर को ख़िज़ाँ का कोई पयाम दो कि निहाँ इसी में फ़रार है कि मिरी बिसात ग़ुबार है