वीनस

पहना के ज़ंजीर-ए-आबी बना ताब की
अब भी जकड़े रखा है मुझे पानियों ने

नफ़स मेरा पानी मिरी रूह पानी
मेरे अक्स की लहर-दर-लहर सतहों में सय्याल पतवार खोले हैं दर और दरीचों की तारीख़ के

मुर्तइश मुर्तइश अपनी फैली रगों की फ़रावानियों में
बहाता हूँ मैं नग़्मा-ज़न कश्तियों के चराग़

आसमानों का आईना सर पे लिए
फड़फड़ाते कबूतर की दस लाख हैरत भरी सुर्ख़ आँखों में चकरा के गिरते हुए

सब कलीसा महल और क़ंदक़ के सब्ज़ और आलूदा मेहराब ओ गुम्बद पानी
अयाँ मेरे सीने की सय्याल पहनाइयों में

सहन-ता-सहन फ़ाख़्ताओं के शहपर
तमद्दुन के तेवर

हवा के सुतूँ-दर-सुतूँ सारे सय्याह पैकर
घुले हैं ज़मानों से पानी की गलियों में ताजिर जहाज़ों के ज़रख़ेज़ फेरे

मगर सारी आराइशों में समा कर
सराबों की मौजों के ग़ैबी थपेड़ों ने पल पल निखारा है बोसीदा चेहरे को मेरे

तो अपने ही नम और ख़्वाबीदा सायों से अफ़्साने कहते हुए अब
मुसलसल रवानी के काँधों पे रहते हुए अब

तग़य्युर का तूफ़ाँ उठाऊँ तो क्या हो
तिरी आँख में डूब जाऊँ तो क्या हो


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