इन वीरान ग़ारों को देखो कि यहाँ इंसानियत की जुरअत की कहानी दफ़्न है यहाँ इंसान ने अंधी ताक़त से टक्कर ली थी हमदर्दी के बोल सारे हमदर्दों के पाँव की ज़ंजीर बने थे और लुटेरे हमारे हँसते हुए बच्चों को कुचलते रहने के लिए आज़ाद थे इक नज़र इन वीरान ग़ारों को देखो कहीं वही ग़ार तो नहीं जिन की ओट से हर रोज़ नया सवेरा लुटेरों के लिए आग हमदर्दों के लिए शर्म और दबे-कुचलों के लिए उम्मीद की नन्ही सी किरन ले कर उभरता है