दूर किसी बस्ती की नीम-तारीक कोठरी में एक तंग चारपाई पे कराहत-ज़दा कोख से ग़ैब की मदद को पुकारती आधी चीख़ पूरे जिगर से पार हुई तो नन्ही चलाई दिल बैठ गए माँ उफ़ुक़ के पार जा चुकी थी रिवायात की क़ब्र में बे-हिसी का कफ़न पहना के उसे तहज़ीब से दफ़्न कर दिया गया अज़िय्यत में मुब्तला ज़ेहनों को क़िस्मत की गोली दे कर सुला दिया गया और वो नौ-मौलूद बच्ची अपनी जन्म-जली माँ से नहीं कह पाई देख विरासत तेरा ख़ून पीने के बा'द मेरी एक और माँ खोजने निकल पड़ी है