मैं बहुत ख़ुश हूँ कि इस दर्जा मिली दौलत-ए-ग़म इतनी दौलत कि गिनी जाए न रक्खी जाए और फिर किस को ख़बर उस की मगर मेरे सिवा उस का मालिक भी नहीं कोई मगर मेरे सिवा और दौलत भी ये ऐसी कि कहीं बेश-बहा एक इक मोती का है रंग अलग शान जुदा क्यूँ न हो कितने ही सालों की कमाई है ये सिर्फ़ मेरी नहीं पुश्तों की कमाई है ये छोड़ी अज्दाद ने औलाद की बारी आई और औलाद भी औलाद को देती आई कुछ कमी आई न उस में किसी मौसम किसी साल बे-हिसाब हो के ये बढ़ती रही बढ़ती ही रही मैं बहुत ख़ुश हूँ कि इस दर्जा मिली दौलत-ए-ग़म मेरे अज्दाद में भी मुझ सा न था कोई अमीर मेरी दौलत के मुक़ाबिल हैं वो सब लोग फ़क़ीर मैं बहुत ख़ुश हूँ कि इस दर्जा मिली दौलत-ए-ग़म भूलता ही नहीं मैं अपनी अमीरी का ग़ुरूर मेरे अज्दाद अमीर और मैं अमीर इब्न-ए-अमीर रश्क से हाए मगर इस पे मरा जाता हूँ कि न बढ़ जाए कहीं रुत्बा-ए-औलाद-ए-अमीर रश्क आता है बहुत उन पे नसीबे दारद