वो हम्द-ए-रब्ब-ए-जलील By Nazm << मुकालिमा यानी ला-यानी >> हमें ता'लीम देता है इशारों से किनायों से अछूते इस्तिआरों से कभी तश्बीह के रौशन सितारों से हमारे ज़ेहन-ओ-दिल की हर तह-ए-ना-साफ़ को आलूदगी से पाक करता है कभी लफ़्ज़ों के तन पर से क़बा-ए-पुर-तकल्लुफ़ चाक करता है हर इक बातिल रवय्ये को जला कर राख करता है Share on: