जब भी दिल भर आया आँखें छल्कीं तन्हाई के इक गोशे में उस के काँधे पे सर रख कर उस से दिल की बातें कह कर जी कुछ तो हल्का होता था उस की दिल-जूई की उँगली मेरी पलकों से रख़्शाँ गौहर चुन चुन कर अपनी पलकों के धागे में पिरो के रख लेती थी इक दिन शाम के गहरे साए शजर के ज़र्दी माइल आँसू क़तरा क़तरा बहते बहते मेरी आँखों में दर आए! बोझल क़दमों से चल कर उस की बाँहों में जाना चाहा हर गोशे में उस को ढूँड के हार चुकी हूँ सब आईने तोड़ चुकी हूँ!