साथ में दोनों की बस ये आख़िरी तस्वीर है वक़्त-ए-रुख़्सत आख़िरी लम्हों का कोई बोझ ले कर लौटना आसाँ नहीं था इस लिए मैं ने भी कुछ कुछ बे-यक़ीनी से ही पूछा था चलो ना साथ में तस्वीर लेते हैं गुज़िश्ता वक़्त की कोई कुदूरत दिल में ले कर लौटना अच्छा न होता इस लिए तुम ने भी शायद यूँ ही आधे मन से खिंचवा ली थी ये तस्वीर जिस में हाथ तो काँधों पे हैं इक दूसरे के पर हमारे दरमियाँ का फ़ासला बिटवीन दी लाइंस साफ़ लिक्खा दिख रहा है साथ में दोनों की बस ये आख़िरी तस्वीर है जो वॉल-पेपर में मिरे अब भी लगी है