तसव्वुरात की दुनिया को ढूँढता हूँ कि ज़ीस्त तिरे तक़ाज़ों की हद नक़्शा-ए-जहाँ में नहीं तुझे ख़बर है अजल बारहा मिरे घर से मिरी उदासी पे आँसू बहा के लौट गई नहीं कि मेरे मुक़द्दर में इंक़लाब नहीं फ़क़त ये तेरी तही-दामनी है जिस के तुफ़ैल तिरे तराशे हुए बुत दयार-ए-हस्ती में असीर-ए-रंज-ओ-गदाई-नसीब हैं अब तक तुझे अब अपने तमाशे पे नाज़ होगा मगर तुझे ख़बर है ये कम बाइ'स-ए-मलाल नहीं मलाल तुझ को तिरी कम-नसीबियों पे फ़ुग़ाँ अगर ख़ुश आए तो आए कि मेरी बज़्म-ए-ख़याल अभी जवाँ है हसीं है और ऐसे आलम में अजब नहीं कि मिरी चश्म-ए-फ़िक्र पा जाए वो काएनात वो आलम कि जिस को हर लम्हा नए-नवीले धुँदलके सँवारा करते हैं