वो एक नन्ही सी प्यास जिस ने सराब-ए-सहरा की दास्तानों को अपने ख़ूँ से रक़म किया था जफ़ा के तीरों को ख़म किया था वफ़ा की आँखों को नम किया था बुलंद हक़ का अलम किया था वो प्यास करवट बदल रही है अब अपने पैरों से चल रही है वो प्यास बचपन में जिस ने सातों समुंदरों का सफ़र किया था वो प्यास जिस की ख़मोशियों ने सदा-ए-दरिया को सर किया था वो प्यास जिस ने सितमगरों का सुकून ज़ेर-ओ-ज़बर किया था सितम के ऐवाँ में आ गई है