याद एक बे-रंग बे-महक मुरझाया हुआ गुलाब जिस के काँटों की चुभन बाक़ी रहती है सदा याद-ए-माज़ी की बनाई हुई एक धुँदली तस्वीर मेल नहीं खाता जिस से हाल का चेहरा फिर भी लगी है दिल की दीवार पर याद टूटा-फूटा एक ऐसा खिलौना जिस से इंसान दिल बहलाना चाहे बे-कार होने के बावजूद उसे फेंकना नहीं चाहे याद एक सराब ज़ीस्त के रेगिस्तान में जो और भी बढ़ा दे थके हारे मुसाफ़िर की प्यास