मेरे घर के आँगन में ये पेड़ घनेरा कैसा है उस की शाख़ों से हर लम्हा ज़हर टपकता रहता है ख़ून-ए-जिगर से नन्ही नन्ही कलियाँ जब सभी आती हैं उन का ख़ूँ हो जाता है पल-भर में मुरझा जाती हैं उस की शाख़ों से हर लम्हा ज़हर टपकता रहता है सख़्त परेशाँ हैराँ हूँ इस करवट के देख चुका हूँ ये वैसे का वैसा है मेरे घर के आँगन में ये पेड़ घनेरा कैसा है