वो नग़्मे वो मनाज़िर वो बहारें याद हैं मुझ को यही वो नक़्श हैं जो मिट नहीं सकते मिटाने से वो रातें और वो सावन की फुवारें याद हैं मुझ को यही अफ़्साने अक्सर कहता रहता हूँ ज़माने से वो तेरा मुस्कुरा कर चाँद को ताबिंदगी देना शराब-ए-इश्क़ से मख़मूर हो जाना फ़ज़ाओं का वो तेरी मस्त आँखों का नवेद-ए-ज़िंदगी देना वो अक्सर खेलना ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से हवाओं का मिरा दिल हो गया है गर्दिश-ए-अय्याम से वाक़िफ़ बुलंद-ओ-पस्त आलम फिर रहे हैं मेरी आँखों में मज़ाक़-ए-दिल-बरी है इश्क़ के पैग़ाम से वाक़िफ़ तसव्वुर है मिरा खोया हुआ सा तेरी आँखों में तू मुझ से दूर है लेकिन तुझे मैं याद करता हूँ न जब फ़रियाद करता था न अब फ़रियाद करता हूँ