यक़ीन के ख़िलाफ़ By Nazm << ये हवेली गिर रही है यही रस्सी मिली थी >> भरोसा भरोसा ये क्या रट लगाई है तुम ने? तुम अलग हो कोई इस जहाँ से अरे जैसा मैं वैसे तुम मैं ही जब आज की सुब्ह वैसा न था जैसा सोया था रात तो फिर किस लिए और क्यूँ मैं तुम्हारी पुरानी वफ़ा-दारियों पर भरोसा करूँ ये बताओ Share on: