ये मई की पहली, दिन है बंदा-ए-मज़दूर का मुद्दतों के ब'अद देखा इस ने जल्वा हूर का ये जो रिश्ता-दार था हम सब का लेकिन दूर का मिल के मालिक ने इसे रुत्बा दिया मंसूर का जब लगाया हक़ का नारा दार पर खींचा गया नख़्ल-ए-सनअ'त इस के ख़ूँ की धार पर सींचा गया आज लेबर-यूनियन में शादमानी आई है आज मज़दूरों को याद अपनी जवानी आई है मिल के मालिक को मगर याद अपनी नानी आई है या इलाही क्या बला-ए-आसमानी आई है सुनते हैं मज़दूर से मालिक का मोहरा पिट गया ''एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था वो भी मिट गया'' होता है 'मे-डे' का और 'मे-पोल' का जब इंतिज़ाम नाचते हैं बाँस के गिर्द आ के योरोपी अवाम लेकिन अब नाचेगा वो ज़ालिम कि जो है बद-लगाम बाँस के बल पर दिखाए जैसे बंदर अपना काम वो जो पहले था कभी बंदर मदारी बन गया या'नी मज़दूर अफ़सर-ए-सरमाया-कारी बन गया बाज़ ऐसे थे जो सरमाए के ठेकेदार थे कहते थे मज़दूर को ख़र और ख़ुद ख़र-कार थे चोर-बाज़ारी की जड़ थे और बड़े बट-मार थे नफ़अ-ख़ोरी के सिवा हर काम से बेज़ार थे अब हलक़ में उन के जो खाया अटक कर जाएगा ग़ैर-मुल्कों में न सरमाया भटक कर जाएगा पूछो इन सरमाया-दारों से कि कब जागोगे तुम या यूँही पीते रहोगे बे-मुरव्वत मय के ख़ुम देखो हर साल आएगी माह-ए-मई की ये यकुम सुनते हैं सीधी नहीं होती कभी कुत्ते की दुम तुम मगर रखते हो एक इंसान की नोक और पलक ''बे-नियाज़ी हद से गुज़री बंदा-परवर कब तलक'' क़ाबिल-ए-इज़्ज़त हैं इस दुनिया के मेहनत-कश अवाम मुल्क की दौलत हैं ये, वाजिब है इन का एहतिराम उस के ये मेम्बर हैं लेबर-यूनीयन है जिस का नाम इन की मेहनत के दिए जाएँगे इन को पूरे दाम ये नहीं होगा ख़फ़ा हो कर दिहाड़ी काट दी आधे रस्ते लाए और इंजन से गाड़ी काट दी