कल बाज़ार में भय्या शाफ़ी पीने आए ठंडी कॉफ़ी इक दो पैकेट बिस्कुट खाए ठूँस गए दो दर्जन टॉफ़ी आलू छोले खा कर बोले बर्फ़ी एक किलो है काफ़ी अम्मी जी की बात न मानी अब्बू से की वा'दा-ख़िलाफ़ी ऐसा खटका पेट का मटका अल्लाह मुआ'फ़ी अल्लाह मुआ'फ़ी गुड्डू का भी हाल सुनाएँ दूध पिएँ न अंडे खाएँ फल तरकारी एक न भाए ग़ुस्से में बस होंट चबाएँ देख के दस्तर-ख़्वान पे मछली पाँव पटख़ते भागे जाएँ चावल रोटी गोश्त की बोटी देखें तो नख़रे दिखलाएँ दिन का हो या रात का खाना रोएँ पीटें शोर मचाएँ दुबले पतले रूखे सूखे बात करो तो लड़ने आएँ इतने हल्के फुल्के से हैं फ़ैन चले तो उड़ ही जाएँ