मैं अपनी बीवी से बात करते नपे तुले लफ़्ज़ बोलता हूँ मैं अपने दफ़्तर में साथियों से लिखी हुई बात बोलता हूँ मैं अपने लख़्त-ए-जिगर से अक्सर नज़र मिलाने से काँपता हूँ ये कैसी फ़स्ल-ए-बहार आई सबा से ख़ुशबू डरी हुई है ये कैसी रुत आ गई जुनूँ की नसीम गुलचीं से मिल गई है