तुम चमन-ज़ाद हो फ़ितरत के क़रीं रहते हो दिल ये कहता है कि तुम महरम-ए-असरार भी हो तुम्हें फ़ितरत की बहारों की क़सम ये तमाशा-गह-ए-आलम क्या है नूर-ए-ख़ुर्शीद का जाँ-सोज़ जहाँ-ताब जमाल आसमानों पे सितारों का सुबुक-काम ख़िराम ये गरजते हुए बादल ये समुंदर का ख़रोश ये परिंदों के सुहाने नग़्मे कहीं बढ़ती हुई अज़्मत कहीं लुटता हुआ हुस्न बे-सबब बुख़्ल फ़रावाँ-बख़्शी क़हत आलाम मसाइब के पहाड़ ऐश के ख़ुसरवी-ओ-तंतना-ए-फ़ग़फूरी कहीं परवेज़ के हीले कहीं चंगेज़ के ज़ुल्म कहीं शब्बीरी-ओ-इब्राहीमी राज़ ही राज़ है हैरत-कदा-ए-बज़्म-ए-नुमूद तुम चमन-ज़ाद हो फ़ितरत के क़रीं रहते हो ये तमाशा-गह-ए-आलम क्या है नूर-ए-महताब की चादर ले कर घास सोती ही रही फूल लब बंद रहे पेड़ रहे महव-ए-सुकूत तुंद-रौ बाद-ए-शुमाली का तरीड़ा आया फूल त्योरा से गए पेड़ हुए सर-ब-सुजूद घास ने चादर-ए-महताब में करवट बदली ये तमाशा-गह-ए-आलम क्या है