आब-ओ-दाना By Qita << किसी को देखूँ तो माथे पे ... अजनबी बन के हँसा करती है >> कभी वतन में हमारा भी आब-ओ-दाना था ये तब की बात है जब मुल्क में ख़ज़ाना था तमाम बैंक लुटेरों ने मिल के लूट लिए वो शाख़ ही न रही जिस पे आशियाना था Share on: