आह! मर्ग-ए-आरज़ू का माजरा अब क्या कहूँ By Qita << अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ... आब-ए-दरिया में है जिस तरह... >> आह! मर्ग-ए-आरज़ू का माजरा अब क्या कहूँ इक मुसलसल यास का है सामना अब क्या कहूँ दम-ब-दम बुझती ही जाती है नशात-ए-दिल की जोत रच गया है रूह में इक दर्द सा अब क्या कहूँ Share on: