अब भी इक लब में और तबस्सुम में By Qita << पास रह कर जुदाई की तुझ से है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल >> अब भी इक लब में और तबस्सुम में हद्द-ए-फ़ासिल है एक दूरी है कितनी सदियाँ गुज़र चुकीं लेकिन ज़िंदगी आज भी अधूरी है Share on: