बदन और ज़ेहन मिल बैठे हैं फिर से By Qita << दारोग़-गोई जहाँ जहाँ तिरी नज़रों की ... >> बदन और ज़ेहन मिल बैठे हैं फिर से ये दिल फिर से अकेला हो रहा है शनासाई ज़ियादा हो रही है और अंदर कोई तन्हा हो रहा है Share on: