जहाँ जहाँ तिरी नज़रों की ओस टपकी है By Qita << बदन और ज़ेहन मिल बैठे हैं... किस लिए अब हयात बाक़ी है >> जहाँ जहाँ तिरी नज़रों की ओस टपकी है वहाँ वहाँ से अभी तक ग़ुबार उठता है जहाँ जहाँ तिरे जल्वों के फूल बिखरे थे वहाँ वहाँ दिल-ए-वहशी पुकार उठता है Share on: