बैठे बैठे उन की महफ़िल याद आ जाती है जब By Qita << मै-कदा छोड़ के मैं तेरी त... दफ़अतन 'अनवर' ख़य... >> बैठे बैठे इन की महफ़िल याद आ जाती है जब देखती है ये समाँ तख़्ईल की ऊँची निगाह जैसे थोड़ी देर नन्ही बूंदियाँ पड़ने के ब'अद चर्ख़ पर ख़ाली सिमटते फैलते अब्र-ए-सियाह Share on: