चूम कर उस बुत की पेशानी को पछताना पड़ा By Qita << आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती एजाज़-ए-इज्ज़ >> चूम कर उस बुत की पेशानी को पछताना पड़ा खिंच गया मेरे लब-ए-लाल-ए-मोहब्बत से असल जिस तरह इस्याँ-शिआरों की सियहकारी के ब'अद खोखली साबित हुआ करती है तामीर-ए-अमल Share on: