क्यूँ-कर बयान-ए-हुस्न हो क्यूँ-कर ग़ज़ल कहें Admin घायल दिल शायरी, Qita << ज़िंदगी से जवाब माँगूँगा क़दीम वज़्अ पे क़ाएम रहूँ... >> क्यूँ-कर बयान-ए-हुस्न हो क्यूँ-कर ग़ज़ल कहें घायल तिरी निगाह के ऐ जाँ कहाँ हैं हम वो दिल कहाँ जो ढूँढता फिरता था तीर को गोया कि एक उतरी हुई सी कमाँ हैं हम Share on: