गदा हूँ मुझ को लेकिन दौलत-ए-कौनैन हासिल है By Qita << जाने कब तक तिरी तस्वीर नि... काश हम लोग लड़ गए होते >> गदा हूँ मुझ को लेकिन दौलत-ए-कौनैन हासिल है वो आएँ घर मिरे तक़दीर थी ऐसी कहाँ मेरी मैं उन को देख कर 'एहसान' ये महसूस करता हूँ कि जैसे मिल रही हो मुझ को उम्र-ए-राएगाँ मेरी Share on: