गरेबाँ-चाक महफ़िल से निकल जाऊँ तो क्या होगा By Qita << अपने उड़ते हुए आँचल को न ... बस कि फ़ा'आलुम्मा-युरी... >> गरेबाँ-चाक महफ़िल से निकल जाऊँ तो क्या होगा तिरी आँखों से आँसू बन के ढल जाऊँ तो क्या होगा जुनूँ की लग़्ज़िशें ख़ुद पर्दा-दार-ए-राज़-ए-उल्फ़त हैं जो कहते हो सँभल जाओ सँभल जाऊँ तो क्या होगा Share on: