गिर रहे हैं बदन पे शाख़ से फूल By Qita << हम खस्ता-तनों से मुहतसिबो... मैं तो क्या मुझ को देखने ... >> गिर रहे हैं बदन पे शाख़ से फूल छू रही है सबा लब-ओ-रुख़्सार साया-ए-गुल में एक दोशीज़ा देर से तक रही है रक़्स-ए-बहार Share on: