है एहतिसाब-ए-वक़्त की लटकी हुई सलीब By Qita << हुस्न तेरा कभी गुल और कभी... ये भी सच है कि मुझे दिल स... >> है एहतिसाब-ए-वक़्त की लटकी हुई सलीब हर रोज़ जैसे रोज़-ए-जज़ा दाम चढ़ गए! नक़्द-ए-ख़िरद सुरूर-ए-तमन्ना का मोल है अरमाँ का रंग ज़र्द हुआ दाम चढ़ गए Share on: