हुस्न तेरा कभी गुल और कभी माहताब हुआ By तिश्नगी, Qita << सियासी अस्तबल है एहतिसाब-ए-वक़्त की लटक... >> हुस्न तेरा कभी गुल और कभी माहताब हुआ कभी आईना कभी महर-ए-जहाँ-ताब हुआ दिल-ए-बेताब मिरा रेग-ए-रवाँ की सूरत तेरे दीदार की शबनम से न सैराब हुआ Share on: