हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो Admin रोज डे शायरी हिन्दी, Qita << इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी ह... गुलों का, नग़्मों का, ख़्... >> हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो रोज़ मरते हैं, रोज़ जीते हैं इक नया ज़ख़्म दिन को मिलता है इक नया ज़ख़्म शब को सीते हैं Share on: