हर ख़िज़ाँ ग़ारत-गर-ए-चमन ही सही By Qita << इल्म के थे बहुत हिजाब मगर दिल की हर आरज़ू है ख़्वाब... >> हर ख़िज़ाँ ग़ारत-गर-ए-चमन ही सही फिर भी इक सरख़ुशी बहार में है मौत पर इख़्तियार हो कि न हो ज़िंदगी अपने इख़्तियार में है Share on: