हर माह लुट रही है ग़रीबों की आबरू By Qita << इश्क़ इक जिंस-ए-गिराँ-माय... ये बोला दिल्ली के कुत्ते ... >> हर माह लुट रही है ग़रीबों की आबरू चढ़ने लगा हिलाल-ए-क़ज़ा दाम चढ़ गए ऐ वक़्त मुझ को ग़ैरत-ए-इंसाँ की भीक दे रोटी में बिक गई है रिदा दाम चढ़ गए Share on: