इश्क़ इक जिंस-ए-गिराँ-माया है इक दौलत है By Qita << कितनी सदियों से अज़्मत-ए-... हर माह लुट रही है ग़रीबों... >> इश्क़ इक जिंस-ए-गिराँ-माया है इक दौलत है ये मगर उम्र का हासिल तो नहीं है ऐ दोस्त मंज़िलें और भी हैं इस से हसीं इस से जमील वस्ल कुछ आख़िरी मंज़िल तो नहीं है ऐ दोस्त Share on: