हसीन कितनी है दुनिया-ए-रंग-ओ-बू अपनी Admin Qita << जितना बाक़ी है वो इम्कान ... जो लोग तरफ़-दार अलीगढ़ के... >> हसीन कितनी है दुनिया-ए-रंग-ओ-बू अपनी मगर नहीं है उसे एहतियाज-ए-लफ़्ज़-ओ-बयाँ है कार-ख़ाने में मसरूफ़-ए-कार गरचे कोई मगर न पाँव की आहट न है सदा-ए-ज़बाँ Share on: